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कद्दू की खेती 

द्वारा, दिनांक 26-08-2019 11:39 AM को 416

कद्दू की खेती 

सब्जीयों की खेती में कददू का एक विशिष्ठ स्थान है। यह एक खीरावर्गीय फसल है जिसे जायद एवं खरीफ दोनों मौसम में उगाया जा सकता है। कद्दू की खेती दोमट और बलुई दोमट दोनों प्रकार की  मृदाओं में सफलता पूर्वक की जा सकती है अधिक अम्लीय या क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है।

उन्नत किस्मे : कद्दू की अनेक किस्मे विकसित की गयी है जिसमे पूसा विश्वास, पूसा विकास, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, पूसा हाईब्रिड 1 मुख्य है। इसके अतिरिक्त निजी कंपनियों द्वारा भी कद्दू किस्मे विकसित की गयी है।

खेत की तैयारी : पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 3-4 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना ले अथवा रोटोवेटर का उपयोग कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। अंतिम जुताई में 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद भूमि में मिलाकर नालियाँ बनाये।

बुवाई एवं बीज की मात्रा : खेत तैयार करने के बाद खेत में बुवाई हेतु 45 सेंटीमीटर चौड़ी एवम 20-25 सेंटीमीटर गहरी नाली 3 से 4 मीटर की दूरी पर तैयार कर नाली में 60-75 सेंटीमीटर की दुरी पर बुवाई करनी चाहिए।  सामान्यतः 1 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए पर्याप्त है। बीज उपचार के लिए 2 से 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम का प्रयोग करे। जायद की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती है तथा खरीफ की फसल की बुवाई जून से जुलाई तक की जाती है।

उर्वरको की मात्रा : गोबर की खाद के अतिरिक्त 80 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवम 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता फसल को होती है। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देना चाहिए।  शेष नत्रजन की आधी मात्रा दो सामान भागो में बाँट कर 3 से 4 पत्तियां पौधे पर आने पर तथा दूसरी बार फूल आने पर देना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन : जायद में कददू की खेती के लिए प्रत्येक सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन खरीफ में इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं  है।  वर्षा नहीं होने या लम्बी अवधि तक पानी न बरसने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करे।

खरपतवार नियंत्रण : कद्दू बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली निराई गुडाई करनी चाहिए। खेत को  खरपतवारों से मुक्त रखे। आवशकता अनुसार दो से तीन निराई गुडाई करना लाभकारी है। खेत में खरपतवारों की संख्या अधिक होने पर बुवाई के बाद एवं फसल उगने से पूर्व पेंडीमेथालीन 30 ई सी की 3.30 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर जमीन पर  छिडकाव करना चाहिए।

रोग नियंत्रण : इसमे फफूंद जन्य रोगो की रोकथाम के लिए मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोलकर  हर 10 दिन से 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिए।

कीट नियंत्रण : इसमे कई कीट लगते है मुख्यत: रेड पम्पकिन बीटल (लाल कीड़ा), चेंपा, फलमक्खी मुख्य है। इनकी रोकथाम के लिए कार्बोसल्फान 25 ई. सी. 1.5 मिलीलीटर लीटर या मैलाथियान 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकता अनुसार छिडकाव करना चाहिए।

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